Saturday, December 19, 2015

'' बन नहीं पाये शहर के '' नामक नवगीत , कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -









         हम शहर के हैं ,
         मगर हम 
         बन नहीं पाये शहर के । 

शहर में जन्मे ,
शहर में पले हैं हम 
औ ' बढ़े हैं 
किन्तु अब दिखते न 
पहले की तरह से 
दिल बड़े हैं ,
         जब कि 
         गैरों को समझते लोग 
         अपने गाँव - घर के । 

मन हमारा 
बर्फ जैसा सर्द 
अब तक हो न पाया ,
पत्थरों के इस शहर में 
आँसुओं को बो न पाया ,
         दर्द किसका कौन देखे ,
         आईने सब यहाँ दरके । 

फाड़ते 
आकाश का दिल ,
प्रेत - जैसे भवन ऊँचे ,
भीड़ के सैलाब में 
डूबीं सड़क औ ' गली - कूँचे ,
         धुँआ साँसों ,
         शोर से बेदम बदन 
         हो चले स्वर के । 

ज्ञान औ ' विज्ञान की 
काया बनी ,
माया शहर की ,
स्वार्थ , छल , बल ,
अर्थ - केन्द्रित ,
हर जगह गाथा जहर की ,
         व्यक्ति की पहचान ग़ुम ,
         घेरे अकेलापन पसर के । 

नित - नयी अफवाह उड़ती ,
उलट बहती हैं हवाएँ ,
है न सूत - कपास ,
पर 
सब ही यहाँ डंडे घुमाएँ ,
यंत्र जैसी ज़िन्दगी ही 
         साथ में है ,
         हर बसर के । 

है समय विपरीत ,
लेकिन 
मुश्किलें सब ओढनी हैं ,
ज़िन्दगी की टूटती लय ,
हर तरह से जोड़नी है ,
         घाव के 
         मरहम बनें हम ,
         अग्नि - सर की हर लहर के । 


                          - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' अँधेरा बढ़ रहा है ''  ,  पृष्ठ - 51 , 52 , 53

sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com

सुनील कुमार शर्मा  
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867



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