भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ?
सामने मेरे खड़ा
चम्बल नदी - सा क्रुद्ध भरका।
है कहाँ पितृव्य का आशीष वाला हाथ ,
माँ की है कहाँ ममतामयी वह गोद ,
जो दुख दर्द सहलाते कहाँ हैं अब
प्रिया के वे प्रियंका नैन ?
उफ़ , कहीं कोई नहीं ,
जो दे तनिक आश्वस्ति ,
लेकिन देह के नीचे
अचानक एक ठण्डा और चिकना
साँप - सा सरका।
भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ?
लालसाएँ / तितलियों के पंख - सी
फेंकीं समय ने नोंच
प्रेत - नख - तन और मन को
दे रहे हैं विष - भरे व्रण / नोंच और खरोंच ,
औ खड़ा मैं हार कर जैसे कि लम्बी जंग।
अब होकर अपाहिज इस तरह
जाऊँ , कहाँ जाऊँ
ओह , बर्बर और खूनी
व्याघ्र - जैसे दृस्टि से बच ?
दे सकेगी ज़िन्दगी
इस मौत को कब तक भला चरका ?
भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ?
- श्रीकृष्ण शर्मा
( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
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पुस्तक - '' एक अक्षर और '' , पृष्ठ - 20
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सुनील कुमार शर्मा
पी . जी . टी . ( इतिहास )
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
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