Tuesday, February 16, 2016

'' मैं खड़ा हूँ हार कर '' नामक नवगीत , स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह - '' एक अक्षर और '' से लिया गया है -









भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ?
सामने मेरे खड़ा 
चम्बल नदी - सा क्रुद्ध  भरका। 
                है कहाँ पितृव्य का आशीष वाला हाथ ,
                माँ की है कहाँ ममतामयी वह गोद ,
                जो दुख दर्द सहलाते कहाँ हैं अब 
                प्रिया के वे प्रियंका नैन ?
उफ़ , कहीं कोई नहीं ,
जो दे तनिक आश्वस्ति ,
                लेकिन देह के नीचे 
                अचानक एक ठण्डा और चिकना 
                साँप - सा सरका। 
                भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ?
लालसाएँ / तितलियों के पंख - सी 
फेंकीं समय ने नोंच 
प्रेत - नख - तन और मन को 
दे रहे हैं विष - भरे व्रण / नोंच और खरोंच ,

                औ खड़ा मैं हार कर जैसे कि लम्बी जंग। 
                अब होकर अपाहिज इस तरह 
                जाऊँ , कहाँ जाऊँ 
                ओह , बर्बर और खूनी 
                व्याघ्र - जैसे दृस्टि से बच ?
दे सकेगी ज़िन्दगी 
इस मौत को कब तक भला चरका ?
भाग्यहीना यात्राओं ने कहाँ ला पटका ?


                           - श्रीकृष्ण शर्मा 

( कृपया इसे पढ़ कर अपने विचार अवश्य लिखें | आपके विचारों का स्वागत है| धन्यवाद | )
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पुस्तक - '' एक अक्षर और ''  ,  पृष्ठ - 20

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सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867

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