Tuesday, April 19, 2016

'' समय साँप के खाये - जैसा '' नामक गीत , कवि श्रीकृष्ण शर्मा के गीत - संग्रह - '' फागुन के हस्ताक्षर '' से लिया गया है -









 समय साँप के खाये - जैसा 
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अगहन ठिठुर रहा , पाले ने 
पियरायी है साँझ सिंदूरी । 

       हँसी - खुशी गरमाहट को 
       ठंडक ने गहरे दफनाया ,
       चहल - पहल ही नहीं , सभी को 
       सन्नाटे ने सुन्न बनाया ;

              सूरज अभी - अभी डूबा पर ,
              धूप हुई मृग की कस्तूरी । 

अगहन ठिठुर रहा , पाल ने
पियरायी है साँझ सिंदूरी । 

       कुहरे के मोटे परदे के 
       पार नहीं जाती हैं आँखें ,
       किन्तु टँगी रह गयीं दृस्टि की 
       चौखट पर पेड़ों की शाखें ;

              समय साँप के खाये - जैसा ,
              कैसे कटे रात की दूरी । 
अगहन ठिठुर रहा , पाले ने 
पियारायी हैं साँझ सिंदूरी । 

       सत्याग्रह करती हैं , मन के 
       द्वारे अनागता इच्छाएँ ,
       कब तक अँजुरी भर सपनों से 
       हम अपने अभाव दफनाएं ;
              चढ़ी जिन्दगी के खाते में 
              सिर्फ अँधेरे की मजबूरी । 

अगहन ठिठुर रहा , पाले ने 
पियरायी है साँझ सिंदूरी । 

       लेकिन अब भी तो कोल्हू पर 
       निशि भर खूब जाग होती है ,
       सच है , वहीं  लोग जुड़ते हैं 
       जहाँ कि एक आग होती है ;
              यही आग तो काम करती है 
              मानव से  मानव की दूरी । 

अगहन ठिठुर रहा , पाले ने 
पियरायी है साँझ सिंदूरी । 

                            - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर ''  , पृष्ठ - 57, 58

sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com

सुनील कुमार शर्मा 
पी . जी . टी . ( इतिहास ) 
पुत्र –  स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867

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